तपोभूमि पर 50 दिवसीय श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान सिद्धचक्र विधान मंडल की पूजा से ठीक हुआ था राजा श्रीपाल को कोढ़ उज्जैनी नगरी में:- आचार्य श्री प्रज्ञा सागर जी महाराज सिद्धचक्र विधान मंडल का इतिहास उज्जैन से जुड़ा है। पौराणिक काल में मैना सुंदरी के पति राजा श्रीपाल का कोढ़ इसी मंडल की पूजा के ठीक हुआ था



 तपोभूमि पर 50 दिवसीय श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान

 सिद्धचक्र विधान मंडल की पूजा से ठीक हुआ था राजा श्रीपाल को कोढ़ उज्जैनी नगरी में:- आचार्य श्री प्रज्ञा सागर जी महाराज

सिद्धचक्र विधान मंडल का इतिहास उज्जैन से जुड़ा है। पौराणिक काल में मैना सुंदरी के पति राजा श्रीपाल का कोढ़ इसी मंडल की पूजा के ठीक हुआ था।

  उज्जैन के पौराणिक इतिहास का भी वर्णन किया। आचार्य श्री प्रज्ञा सागर जी महाराज ससंघ सान्निध्य में प्रतिष्ठाचार्य पं. के निर्देशन में यह विधान किया जा रहा है। मंदिर प्रांगण में सुबह से नित्य नियम पूजा हुई। मंडलजी की पूजा में समाजजनों ने भाग लिया। आचार्य श्री ने सिद्ध भगवान की आराधना व श्रीपाल-मैना सुंदरी की जानकारी प्रवचन में देते हुए कहा- श्रीपाल राजा को कोढ़ होने पर मैना सुंदरी ने सिद्धचक्र मंडल विधान पूजा की। उनकी भक्ति से पीड़ा समाप्त हुई। यह संपूर्ण कथा उज्जैन पर आधारित है। उज्जैन में ही राजा को इस बीमारी से मुक्ति मिली थी। आचार्य श्री ने इस दृष्टांत से विधान का जीवन में महत्व बताया

सचिन कासलीवाल ने बताया कि शुक्रवार को

 तपोभूमि पर आचार्य श्री 108 प्रज्ञा सागर जी महाराज के सानिध्य में 50 दिवसीय श्री सिद्धचक्र मंडल विधान के दूसरे दिन आज विधान कराने का सौभाग्य नेमीचंद, शशि जैन सुदामा नगर उज्जैन एवं राकेश, ज्योति जैन भवानी मंडी वालों को मंडल विधान कराने का सौभाग्य प्राप्त हुआ

दिनांक 19 फरवरी शनिवार को आशा राजेंद्र सरावगी, जयेश बीना जैन उज्जैन का विधान होग

 पौराणिक कथा कुछ इस प्रकार है

चम्पापुर के राजा का नाम अरिदमन और रानी का नाम कुन्दप्रभा था। रानी कुन्दप्रभा, कुन्दपुष्प के समान लावण्यमयी, गुण और शील में अद्वितीय थी। रानी कुन्दप्रभा के अत्यन्त धीर-वीर, उदारवेत्ता, दीनवत्सल, धर्मप्रिय पुत्र रत्न हुआ। उस बालक का नाम श्रीपाल रख दिया। राज्य संचालन में दत्तचित, कामदेव के समान श्रीपाल को एवं अन्य ७०० वीरों को अचानक एक साथ महाभयानक कुष्ठ रोग हो गया, जिससे इन लोगों का शरीर गलने लगा एवं खून बहने लगा। इन लोगों की दयनीय दशा को देखकर प्रजाजन अत्यन्त क्षुब्ध एवं दु:खी रहते थे। जब रोग की दुर्गन्ध के कारण वातावरण बिगड़ने लगा, तब वीरदमन चाचा जी के कहने पर श्रीपाल७०० वीरों के साथ नगर से बहुत दूर उद्यान में जाकर निवास करने लगे।

एक उज्जयनी नामक ऐश्वर्यपूर्ण नगरी थी। जिसके राजा का नाम पुहुपाल था। अनेक रानि  पद्मरानी के गर्भ से सुरसुन्दरी एवं मैनासुन्दरी नाम की दो पुत्रियाँ उत्पन्न हुई। उनमें से सुरसुन्दरी शैव गुरु से एवं मैनासुन्दरी ने आर्यिका से धार्मिक अध्ययन किया था। पिता के पूछने पर सुरसुन्दरी ने अपनी स्वेच्छानुसार हरिवाहन से विवाह स्वीकार कर लिया,परन्तु मैनासुन्दरी ने कहा है कि पिता जी, कुलीन एवं शीलवती कन्यायें अपने मुख से किसी अभीष्ट वर की याचना कदापि नहीं करती है। मैनासुन्दरी की विद्वतापूर्ण वार्ता को सुनकर राजा पुहुपाल तिलमिला गये और उन्होंने क्रोध में आकर कोढ़ी राजा श्रीपाल से विवाह कर दिया। राजा श्रीपाल के कुष्ठ रोग को दूर करने के लिये मैनासुन्दरी ने गुरु के आशीर्वाद एवं विधि के अनुसार अष्टाहिनका पर्व में सिद्धचक्र महामण्डल विधान का आयोजन किया, जिसके प्रभाव से श्रीपाल के साथ ७०० वीरों का भी कुष्ठरोग ठीक हो गया।

कुछ समय बाद श्री पाल मैनासुन्दरी के साथ चम्पापुरी वापस आ गये। एक दिन श्रीपाल अपने महल के छत पर बैठे हुये थे। आकाश में बिजली चमकी, जिसे देखकर उन्हें वैराग्य हो गया। वे अपने पुत्र धनपाल को राज्य सौंपकर वन की ओर चले गये। उनके साथ हजारों की संख्या में मनुष्य तथा माता कुन्दप्रभा भी वन को प्रस्थान कर गई।

श्रीपाल ने मुनीश्वर के पास जाकर जिनदीक्षा धारण कर ली। उनके साथ ७०० वीरों ने भी दीक्षा ले ली, माता कुन्दप्रभा व अन्य रानियों ने भी आर्यिका के व्रत ग्रहण किये। कठोर तपस्या करते हुए अल्पसमय में ही घातिया कमों को नष्टकर केवलज्ञान प्राप्त किया और फिर शेष कर्मों को नष्टकर मोक्षधाम को प्राप्त हुये

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